On the occasion of Madanji’s death anniversary, many emotional tributes were received on FB, as well as mails sent to his family.
One among the many, penned in Hindi by Yunus Khan, is being shared below. So well written, so well-articulated, so feelingly expressed.
The accompanying visual is a collage made earlier by Sangeeta Mathur Simlote, an ardent admirer of Madanji from USA.
एक खीझे हुए या सुकून भरे दिन आप रेडियो का साथ मांगते हैं, इस उम्मीद में कि कहीं से कुछ ऐसा सुनने मिल जाए- जो लहू में सब्र घोल दे। जो इस बेरहम संसार में उम्मीद बंधाए और कहीं से 'लग जा गले....' सुनाई दे जाता है, कहीं तो कोई दिन होता है जब कहीं दूर से भूपी जी की आवाज़ आपका सिर सहला जाती है--'जाड़ों की नर्म धूप और......दिल ढूंढता है'......जाने वो कौन सा लम्हा होता है जब आपके होठों पर अनायास ही सज उठता है--'माई री मैं कासे कहूं'
और क्या आपके बस में होता है जब आंखों की गीली कोरों पर अटकी आंसू की हर बूंद गुनगुनाती है--'नैनों में बदरा छाए'......
क्या आपको पता है कि बहुत उदास और ख़ाली दिनों में क्यों रेडियो का कोई चैनल आपका हमसफर बन जाता है--'वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गयी'... कभी तो आपका दर्द से कांपता दिल पुकारता है--'जो हमने दास्तां अपनी सुनाई आप क्यों रोए'.... कभी तो यूं भी लगता है कि कोई कंधा हो-- जिस पर सिर रखकर देर तक सुनें--'आपके पहलू में आकर रो दिए'। इंतज़ार का कोई पल तो आपने जिया होगा--जब संतूर की तरह आहटों के तार बजे होंगे--'ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है, कहीं ये वो तो नहीं'। उस ज़माने को याद करते हुए जब आंख भर जाती है--और आपको लगता है--'होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा'....... ऐसे रूमानी पलों में पल भर ठहरकर नमन कर लीजिएगा मदन मोहन को.....
आपको नहीं पता पर अनायास ही आपने अपने जीवन के अनगिनत पलों को उनके साथ जिया है। साझा किया है। कहां अहसास होता है गुनगुनाते हुए, सुनते हुए कि ये गाने किस संगीतकार के हैं। बस हाथ जोड़ लीजिएगा। कहिएगा सलाम मदनमोहन।